भारतीय योगशास्त्र एक संपूर्ण विकसित विज्ञान है. अष्टांगयोग के अनुसार यम से सामाजिक शुचिता, नियम से व्यक्तिगत शुचिता, आसन - प्राणायाम से विज्ञाननिष्ठ निरंतर प्रयास और अंतरंग साधना अर्थात प्रत्याहार-धारणा-ध्यान-समाधि से आनंदमय लैकिक जीवन के साथ पारमार्थिक मार्ग भी स्पष्ट प्रकाशित होता है. तथापि शांति-समृद्धि के लिए "योग' को नित्य कार्यकलापों में यत्नपूर्वक ढालना अत्यावश्यक समझना चाहिए. बालकों के प्रज्ञा के जागरण एवं विकास के लिए गीता परिवार ने प्राणायाम पर आधारित दस मिनट की ऐसी पद्धति का विकास किया है जिसका अभ्यास अनेक विद्यालयों में हजारों विद्यार्थी करते हैं।