नाटक बाल-संस्कार का एक प्रबल और प्रभावी साधन है. बाल-नाटय बच्चों को एक नए ज्ञानात्मक संसार से परिचित करवाते हैं.. एक नया द्वार खोल कर अनुकरण का नया क्षेत्र प्रदान करते हैं. रंगमंच उनकी क्रियात्मकता को अभिव्यक्ति देता है. नाटयशास्त्र के प्रणेता भरतमुनि ने भी नाटक का उद्देश्य केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि जनशिक्षा और जनचेतना का जागरण बताया है, मनोरंजन तो सहज ही हो जाता है. इसीलिए गीता परिवार ने "नाटय-संस्कार' को बाल-संस्कार की अपनी साधना का एक प्रमुख साधन बनाया है, अपने कार्य की दृष्टि से बाल-नाटय की नयी परिभाषा गढ़ी है, इस क्षेत्र में कार्य करके नए आयामों को छुआ है. योगेश्वर, विजयध्वज, दशावतार, वंदेमातरम, आदि महानाट्यों और अनेक छोटे नाटकों के लेखन और निर्देशन का कार्य गीता परिवार ने किया है।