शक्त भुजा हों सशक्त कंधे, आँधी में भी अविरल गति हो.
रग-रग में हो प्यार देश का, खुली निगाहें अविचल मति हो.
तन में बल हो मन निर्मल हो, ज्यों बाती में तेल.
हँसकर-मिलकर-डटकर-बढ़कर, खेल खिलाडी खेल.
किसी भी आयु के बच्चों में खेल के प्रति सबसे ज्यादा आकर्षण होता है. बच्चे क्या बड़े भी खेल खेलते समय बचपन में लौट जाते हैं. खेलों के माध्यम से मनोरंजन हर प्राणी की प्राकृतिक आवश्यकता है. पशु-पंछियों को ही देख लीजिये. वे भी आपको अपनी-अपनी तरह से खेलते और मनोरंजन करते दिख जाएँगे. बंदरों में उछल-कूद करने का, सिंह-शावक में शिकार करने का कौशल खेल-खेल में ही विकसित होता है.
खेल उतने ही प्राचीन हैं जितना इस पृथ्वी पर मानवी जीवन. मानव जीवन के विकास के साथ ही खेलों का विकास प्री होता चला गया. मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य, निर्णय-कौशल, समूह-कार्य, चपलता, कल्पना-शक्ति, स्मरण-शक्ति, रणनीति और योजना बनाना ऐसे कितने ही कुशलताओं का विकास खेलों के माध्यम से सहज ही हो जाता है.